ग्रामीण जनजीवन

आप   सभी इस बात से वाकिब ही हैं कि ग्रामीण जनजीवन मजदूरी  और कृषी पर आधारित जीवन होती है।  गांव में मई महीने के अंतिम दिनों  से ही  किसान परिवारों में  अपनी आगामी फसलों को उगाने को लेकर बात चीत और काम शुरू हो जाती है सभी किसान अपने बैल बछडों को सिखाने (हल चलाने योग्य बनाने )लग जाते है , जब वे परिपक्व हो जाते हैं तो उनको खेतो में लेकर जाते हैं और उनसे हल चलाना शुरू करते हैं ।
गांव में बरसात के मौसम को देखते हुए समय समय पर अलग जुताई की जाती है जैसे 
  मैदानी खेत 
पहाड़ी खेत  
मैदानी खेत मे लोग मैदान को क्यारियों में बांट बांट कर खेत बनाते हैं जिसमे पानी रोककर रखते हैं तथा उसमें निश्चित समय में धान को  उगाकर  उसको वहाँ से उखाड़ कर अलग जगहों पर लगाया जाता है 
       उसके लिए धान बीज को दुकान से लॉकर या घर मे पुराना बीज है तो उसे पानी मे फुलाकर अंकुरित किया जाता है 2 से 3 दिनों में अंकुरित हो जाने के बाद उसे खेत मे  बिज हेतु  बो दिया जाता है  उसको तैयार होने में 20 से 25 दिनों तक (आजकल जैविक खाद के कारण समय अलग अलग है)लग जाता है जब वह तैयार हो जाता है तब उसे उखाड़ कर अन्य खेतो में लगाया जाता है
रोपायी-
      यह समय ग्रमीण का सबसे महत्वपूर्ण  होता है इस समय सभी अपने घर से खेती को औऱ आ जाते हैं सुबह का नाश्ता करके  अपने खेत मे काम करने लग जाते हैं जिसमे महिलाएं रोपा उखाड़ ना और पुरूष खेत को रोपायी उपयुक्त बनाने के लिए उससे जोतने लग जाते हैं यह काम सुबह  से शाम तक करते हैं जब खेत सिद्ध हो जाता है तो  लोग रोपायी करने के लिये अपने  अ गल बगल वालों को बुलाते हैं  रोपायी करने और उनको बदले मे paise dete hain |

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